अमित हारित का स्वप्न सदृश कला संसार
अमित हारित का स्वप्न सदृश कला संसार
सपनों का इंतजार नहीं..........
सुमन सिंह
सामान्य तौर पर युवा अवस्था को सपने देखने आैर उसे साकार करने के उम्र के तौर पर माना जाता है। उस उम्र से गुजर रहे किसी युवा की अभिव्यक्ति अगर इन शब्दों के साथ आता है कि सपनों का इंतजार नहीं कर सकता यानि can’t wait for dreams। तो पहली नजर में यह बात कुछ चौंकाता सा लगता है तो दूसरी तरफ क्यों जैसा शब्द भी हमारे सामने आता है। इन बातों का जवाब मिलता है इस शीर्षक के साथ ललित कला अकादमी की रवीन्द्र भवन दीर्घा में प्रदर्शित युवा कलाकार अमित हारित के चित्रों को देखने के बाद।
अमित जयपुर से हैं आैर उन थोड़े से युवा कलाकारों में से आते हैं जो कला बाजार के मौजूदा भेड़चाल से अलग हटकर कुछ नया हमारे सामने लाते हैं। राजस्थान अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को लेकर दुनिया भर में जाना जाता है। जो सदियों से ना सिर्फ राज्याश्रयों में ही पल्लवित पुष्पित हुई बल्कि वहां के लोकजीवन के अंग-संग परवान चढती रही। देखा गया है कि समृद्ध विरासत एक तरफ अगर हमारे रचनात्मकता के लिए प्रेरणा बनती है तो दूसरी तरफ यह कि कलाकार या रचनाकार की निजी पहचान उस विरासत के बोझ तले कहीं दब ना जाए का खतरा भी बना ही रहता है। ऐसे में विरासत से मिली पहचान को बचाए रखते हुए अपनी पहचान को बनाए रखना बड़ी चुनौती होती है। लेकिन खुशी होती है जब अमित जैसे युवा इन चुनौतियों से निकलकर अपनी कलाकृतियों के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित करते हैं।
अब बात करें इस एकल प्रदर्शनी के शीर्षक की तो इसका जवाब हमें यह मिलता है कि सपने बुनने वाले सपनों का इंतजार नहीं करते। क्योंकि वह खुद से रच सकते हैं एक स्वप्न सदृश संसार। वह संसार या दुनिया जो हमारे आसपास होकर भी नहीं होता है। दरअसल जब हम अपने चारों ओर नजर दौड़ाते हैं तो पाते हैं कि हमारे इर्द गिर्द बहुत कुछ ऐसा है जिसे नहीं होना चाहिए था तो दुसरी तरफ बहुत कुछ कमी सी है उन चीजों की जिसे होना ही चाहिए था। ऐसे में सिर्फ रचनाकार या सृजनहार के पास ही यह अवसर आैर क्षमता दोनों होती है कि वह दर्शक के सामने अजाना आैर अनदेखा सा लेकिन मनचाहा सा स्वप्न संसार सामने लाकर रख दे।
अमित के चित्रों को वरिष्ठ कला समीक्षक राजेश व्यास जी के शब्दों में बहुत ही आसानी से समझा जा सकता है। राजेश जी के शब्दों में- मुझे लगता है मूर्त रूपों की समष्टि है यह संसार। रूप रूप में परिणत प्रतिरूप! रूप क्या है ? सभी व्यक्त भावों की संज्ञा ही तो! अमित की कलाकृतियां इस दीठ (दृष्टि) से अव्यक्त का बहुत सारा व्यक्त है। पर कैनवस पर जीव- जंतु, प्रकृति के भांत भांत के रूप आैर मानवीय आकृतियों के जाने पहचाने स्वरूप होते हुए भी उन्हें देखे का देखे का हुबहु नहीं कहा जा सकता है। उनकी उकेरी छवियों में भावों का लोक भव ऐसा है जो देखे हुए को एक तरह से संस्कारित करता समकालीनता को अपने तई व्याख्यायित करता है। रंग रेखाओं का उनका कहन इसलिए भी सुहाता है कि वहां पर आकृतियों में निहित बिम्ब आैर प्रतीक भारतीय लोक चित्रशैलियों की विस्मृत हो रही परम्परा से साक्षात कराने वाले हैं। एक अनूठी लयात्मकता वहां है, जिसे देखने के साथ सुनने आैर गुनने का मन करता है।
सुमन सिंह
22 दिसंबर 2017
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